फीस वृद्धि

नमस्कार। मैं देश का गरीब विद्यार्थी बोल रहा हूँ। विश्वविद्यालय पर सरकार रोज एक नया हमला कर रही है। विद्यार्थी तो विद्यार्थी लेकिन अब तो शिक्षक भी असुरक्षित है। गरीब विद्यार्थीयों को धीरे-धीरे विश्वविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। एक लम्बी रणनीति के चलते सरकार सभी पब्लिक फंडेड यूनिवर्सिटीज़ को या बंद करवा देना चाहती है या फिर उनको इस तरह यूनिवर्सिटी बनायी जा रही  है जहाँ सिर्फ अमीरों की औलादें पढ़ सके। जेएनयू, बीएचयू, आई. आई. टी. मुम्बई, उत्तराखंड आयुर्वेद कॉलेज यह बड़े स्तर पर विश्वविद्यालय है जहाँ भारी फीस वृद्धि की गयी है। इसी कड़ी में हमारा विश्वविद्यालय महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय.वर्धा भी आ रहा है। यह भी प्रक्रिया में है। हिंदी विश्वविद्यालय देश का सबसे सस्ता पब्लिक फंडेड विश्वविद्यालयोंं की श्रेणी में आता है। यहाँ भी इस वर्ष फीस वृद्धि की गयी। लेकिन छात्र कुछ नहीं बोल पाए। क्योंकि बोलते तो उनको या तो देशद्रोही साबित कर दिया जाता या फिर उन्हें यूनिवर्सिटीज़ से बाहर निकाल देते। यहाँ मेस छात्र चलाते है। जी, यहाँ ऐसा नियम है कि कुछ छात्र 10 दिन के लिए मेस लेते है। और उसे संचालित करते है। मेस का पैसा 1500 रुपये ही लगता है। इन पैसों में भी छात्र अच्छे से मेस संचालन कर लेते है। ऊपर से कुछ पैसे बच भी जाते है। अभी एक नयी मेस बनी है। जिसका नाम संतुष्टि मेस है। यहाँ पहले भी दो मेस ही थी और आज भी दो मेस ही है।पहले गोरखपांडे मेस और बिरसा मुंडा मेस थी।बाद में बिना कोई नोटिस निकाले प्रशासन बिरसा मुंडा मेस को बंद कर देता है। और गोरखपांडे मेस में पीएचडी शोधार्थी जिद्द पर अड़ गये कि हम इस मेस में सिर्फ गोरखपांडे छात्रावास वाले छात्र ही खाना खाएंगे। बाकी चाहे भूखे रहे हमें कोई मतलब नहीं है। लगभग 300 से 400 छात्र संतुष्टि मेस में खाना खाते है। छात्रों द्वारा ही मेस संचालित की जा रही थी तब तीन चार प्रोफेसर हर 10 दिन में आते है।जब उन्हें गोरखपांडे मेस में सब के लिए खाना उपलब्ध करवाने के लिए कहा जाता है तो कहते हैं हम उन से भी अच्छा खाना खिलाएंगे। फिर यह लोग नया नियम लाते हैं कि जिसकी जितनी अच्छी मेन्यू होगी उसे मेस दी जाएगी। सब हॉस्टल के छात्रों को मेस के लास्ट दिन इकट्ठा किया जाता और फिर जो मेस लेना चाहते है उनकी मेन्यू देखते है। और देखते है कि इसमें कितनी बार मिठाई मिल रही है। और कितनी पनीर, पुरी मिल रहा है। फिर सलेक्शन किया जाता है।और ऊपर से यह कहते है कि मेस खत्म हो जाने के बाद जो पैसा बचता है हमें देना हम उसके सही उपयोग करेंगे। अभी 15 दिन पहले से मेस छात्रों के द्वारा मेस चलाने के इंकार करने के बाद प्रशासन ने मेस चलानी शुरू कर दी। एक दो दिन अच्छा खिलाया। बाद में छात्रों से भी घटिया मेस चलानी शुरू कर दी। और जब 10 दिन बीत गए तब इन्होंने कहा कि हम 18 हजार घाटे में है। लेकिन प्रशासन ने मेस संचालन बिना मेन्यू के ही किया और इनकी लिस्ट में एक भी जगह गुलाब जामुन को जगह नहीं दी गयी। यही वही प्रशासन है जो छात्रों के मेन्यू में कितनी बार गुलाब जामुन बन रहा है देखता था। और बात तो यहाँ तक है कि इन्होंने मेस में चिकन, अंडा बनाने पर रोक लगा दी कि हमारी मेस अपवित्र हो जाएगी। अभी 5 दिन पहले की बात है प्रशासन मनमानी पर अड़ गया कि जो छात्र मेस के बीच में खाना छोड़ेंगा उसे 75 दिन के हिसाब से पैसा देना पड़ेगा। बल्कि हमारे लगते दिन के 50 रुपये ही है। और इन्होंने ऐसा खाना खिलाया की सब्जी में कीड़ा निकला। मेस में बैठे वार्डन को बताया तो उसने छात्रों को चुप करवा दिया। अभी विश्वविद्यालय में टेंडर लाया जा रहा है। जिसकी कीमत 2250 रुपये रखी जा रही है। पैसों के विषय को लेकर प्रशासन ने छात्रों के साथ मीटिंग भी की लेकिन सभी छात्रों के असहमति जताने के बावजूद प्रशासन जिद्द पर अड़ा हुआ है कि हम इससे कम पैसों में खाना नहीं खिला सकते है। तो विद्यार्थियों ने प्रशासन के समक्ष कुछ शर्तें रखीं जैसे
1.  1500 रुपये से ऊपर की राशि के लिए प्रशासन सहायता प्रदान करें। 
2.  अगर सहायता नहीं कर सकता तो जो 1000/1500 रुपये का मासिक भत्ता मिलता है वह छात्रों को उपलब्ध कराया जाए। 
 लेकिन प्रशासन कुछ सुनने को तैयार नहीं है अपनी जिद्द पर अड़ा हुआ है। छात्र मेस चलाने के लिए तैयार हुए लेकिन उनकी शर्त यह भी थी कि मेस में छात्रों की संख्या देखते हुए प्रशासन कर्मचारीयों की संख्या बढ़ाये और बिरसा मुंडा मेस चालू करे लेकिन प्रशासन ने अनदेखा कर दिया।विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता है। यहाँ तक एम.फिल और पीएचडी वालों को भी समय पर फेलोशिप नहीं मिलती है। यहाँ पर पढ़ने वाले ज्यादातर गरीब तबके के छात्र है। 1500 रुपये देने के लिए भी छात्र मार्केट में काम करता है। कोई बीच- बीच में खाना छोड़-छोड़ अपने दिन गुजारते है। मतलब कुछ ऐसे वैसे करके ही मेस की राशि जमा कर पाते है तो कुछ नहीं भी कर पाते है। और ऊपर से प्रशासन यह कहकर मेस टेंडर लाया था कि जिस छात्र की इच्छा न होगी टेंडर में खाने की वह बाहर भी खाना खा सकता है। लेकिन टेंडर के नोटिस में प्रशासन ने सभी छात्रों को मेस में खाना खाने के लिए अनिवार्य कर दिया है। आपके लिए यह 750 रुपये कुछ भी मायने नहीं रखते होगे लेकिन हमारे लिए यह 750 रुपये अगले 15 दिन का खाना है। हमारे 10 रुपये की कीमत भी 100 रूपये के बराबर है। फिल्म देखते है, राजनीति करते है, प्यार करते है वगैरह वगैरह यह आतंकवादी है ऐसे शब्दों का प्रयोग कर कुछ लोग छात्रों को दबाने का प्रयास करते है बदनाम करते है। क्योंकि यह अपने बेटों को महंगी फीस में पढ़ाने में सक्षम है। उन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। और कुछ लोग कहते है कि देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए फीस वृद्धि करनी चाहिए। मैं पूछता हूँ क्या देश की अर्थव्यवस्था  सुधारने के लिए और सारे रास्ते बंद हो गये हैं जो अब अर्थव्यवस्था सिर्फ फीस वृद्धि करके ही सुधारी जा सकती है? पूरा देश बिक जाने के बाद भी सरकार के पास पैसा नहीं है कि यूनिवर्सिटी चला सके? पब्लिक के पैसों को यूनिवर्सिटीज़ शिक्षा में लागने को फिजूल खर्ची कहते है। और चले है विश्वगुरु बनने। देश का भविष्य विद्यार्थियों के हाथ में है। अगर इन्हें पढ़ने से रोका जाएगा तो आने वाले भविष्य की कल्पना कर लिजीए। सरकार देश के युवाओं को अनपढ़ रखकर कौनसा राष्ट्र बनानी चाहती है? मुझे नहीं पता लेकिन यह 750 भी फीस वृद्धि होती है तो मैं आगे पढ़ने में सक्षम नहीं हुं। मुझे अपनी छोड़नी पडे़गी। 

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