शिक्षक की भूमिका

जब भी कक्षा (class) में सामने बोलने से डर लगें। तो शुरू से अंत (first and last) तक यही मानकर बोलना शुरू कर दे कि जो शिक्षक बैठा है ये मेरे दोस्त है। और मैं इनको उस बारे में बताना चाहता हूं जो इनको नहीं पता है। लेकिन इस पूरी प्रकिया को तथा छात्र के डर को छात्र अकेले पूरा तथा दूर नहीं कर पाएगा। उसके लिए शिक्षक को भी उस छात्र का साथ देना होगा। आपको सभी छात्रों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखना पड़ेगा। छात्रों के बोलने से पहले उनके मन की बातों को समझना पड़ेगा। बाकी ऐसे भी शिक्षक होते हैं जिनकी क्लास में जाने का कभी मन ही नहीं करता। लेकिन उपस्थिति की वजह से जाना पड़ता है। जो कभी छात्रों को समझते हैं ना उनके विचारों को। उनकी नज़र में छात्रों को बस हर वक़्त पढ़ाई ही करनी चाहिए। जैसे अन्य गतिविधियां छात्रों लिए बनी ही नहीं है। ऐसे शिक्षक दिल से नहीं दिमाग से काम लेते हैं। ऐसे ही शिक्षक कभी किसी के पसंदीदा शिक्षक नहीं बनते। मैं तो ऐसे शिक्षकों को बढ़तीं अशिक्षा तथा बेरोजगारी का बहुत बड़ा कारण मानता हूँ। क्योंकि इनके डरावने स्वभाव के कारण कई सारे छात्र स्कूल/कॉलेज छोड़ देते हैं। ये बच्चों के कोमल मन को जानने की कभी कोशिश ही नहीं करते हैं। जिन्हें जब वो छात्र स्कूल/कॉलेज/यूनिवर्सिटी से बाहर निकल जाने के बाद नमस्ते करना तो दूर उनको देखते ही अपना रास्ता बदल देतें है। या तक की उनको कोसते हुए गाली तक देते हैं। सच्चाई है। 
  सभी स्टूडेंट से प्यार कीजिये। उनके मन को समझने की  कोशिश करिये। जहाँ छात्र की कमजोरी है उस पर ज्यादा ध्यान दीजिये। फिर देखिए वो छात्र आपके नाम का देश विदेश में कैसे डंका बजाते हैं। फिर वो अपने करियर और माता पिता से पहले आपके बारे में सोचेंगे कि "गुरुजी की हम से कितनी उम्मीद है। मैं उनको तोड़ नहीं सकता। पढुंगा और उन्हें कुछ बनके दिखाऊंगा।"  बच्चों को जैसा बनाओगे वैसे बनेंगे। ये आप निर्भर करता है। इस बात पर आप कितने खरे उतरते है।     -गुणवंत कुमार (मेरे अनुभव तक)

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