मेरा गाँव...


  मैं, माता-पिता, छोटा भाई (स्कूल जाता है। 10वीं में है।), बहिन (ससुराल में रहती है) दोस्त,दोस्तों में हर समय उपलब्ध रहने वाला संजय है। प्यार से हम दादू कहते है। बाकी तो पूरी गैंग है। लेकिन इसे लंगोटीया यार कह सकते है। बचपन से ही साथ में रहें हैं। एक कन्हैया है। जिससे बातें कियें सालों हो गए। और भी।जैसे बबलू, विनोद,सूरज,राहुल और भी इनके साथ भी खेलते खेलते बचपन में बहुत बार हाथ पाँव तुड़वाएं।कब्बडी,बर्फ पानी और जंजीर में।,छोटी दादीजी(आनी मोटी बई)है। बूढ़ी है। कही भी आते जाते समय रास्ते में मिल जाती है। मुझे देख कर अपने पास बैठा लेती है। खूब बातें करती है।छोटे बच्चें हर समय सड़क पर खेलते, चलते दिख जाएंगे। बड़े पापा, छोटे पापा भी है। उनसे पापा का मनमुटाव होता रहता है। लेकिन वापस साथ में बैठ जाते हैं। पापा और बुजुर्ग लोग कहते हैं कि हमारे दादाजी के दादाजी के पापा। वो दो लोग बसें थे।पहले बाड़ी रहते थे। जहाँ आज भी भेरूजी का पूराना देवरा है।पापा कहते हैं कि बाड़ी में बांध बनाते समय भोग(नर बलि)दी जाती थी। तो उस में दो लोग एक पति और पत्नी को जिन्दा एक कमरे में बंद कर दिया गया।कमरा बावड़ी जैसा। उसमें सिर्फ एक बांस से अन्दर रोशनी दे दी गई।और ताकि उसमें से धुआँ निकल सकें। खाने पीने के लिए छ: महीने का राशन दे दिया गया था। जाहिर सी बात है अंधविश्वास था। आज तकरीबन 80/90 घर है। बहुत सारे आस पास के गाँव में भी बस गए। जो पूर्वज पहले बसे उन्ही ने खेड़ी नाम रखा था। कुछ समय के बाद पाटीदार समाज भी आया। वो भी बसें। फिर खेड़ी आर्य नगर हो गया। 
   एक गोपाल बासा है। सोम रस का सेवन करते हैं। लेकिन मन के अच्छे है।  उन्हें भोकतें हुए कुत्तों से बहुत एलर्जी है। क्योंकि वो घरो पर चढ़ कर केलू फोड़ देते हैं। चार-पाँच लोग और है। शाम के समय घर के बाहर दादू की दूकान पर बैठकर रोज सभा करते हैं। उनकी आवाज घर में आती रहती है। एक कुत्ता है जो घर के बाहर ही बैठा रहता है। अगर उठ कर जाता भी है तो बाड़े(जहाँ गाय,भैसें बांधी जाती हैं) में चला जाता है। कुतिया ने पाँच-छ: बच्चों को जन्म दिया था लेकिन भाई व उसके दोस्तों की बहुत कोशिश के बावजूद बस एक ही बचा। बाकी सब एक एक करके मर गए। एक बात और गाँव में बहुत कम लोग कुत्ते पालते है। मेरे घर के बाहर जो रहता है वो पालतू नहीं था। वो गाँव का खुला डॉन था। मेरे गाँव के लोग मनमोहन, मोदी, राहुल, सोनिया, इन्दिरा, अशोक गहलोत, वसुंधरा, सी.पी.जोशी, उदयलाल आंजना और श्री चंद कृपलानी तक ही सीमित है। कुछ 15/20 लोगों को और भी नेता याद होगें। सोशल मीडिया पर एक्टीव है। लेकिन फोटो अपलोड करने तक। कुछ संविधानिक नियम जानते हैं। इनको खेती को लेकर ज्यादा फिक्र रहती है। क्योंकि मेरे गांव के लोग ज्यादातर खेती ही करते हैं। उसी में व्यस्त रहते है। 
  गाँव में सूरज निकलने से लोगों की हलचल शुरू हो जाती है। 5 बजे तक आधे से ज्यादा घरवाले पानी भर लेते हैं। कुछ दूध निकालने चले जाते हैं।चाय पीते हैं।    सर्दियों के समय में गोबर के कण्डे बनाते है। और जिन लोगों के अफीम होती है वो 5 बजे ही सब काम निपटा के खेत पर चला जाता है।7 बजे तक लोग खेतों की तरफ टहल आतें हैं। फिर खाना खाते है। फिर वापस खेत के लिए रवाना हो जाते हैं।  फिर दोपहर में खेत पर ले जाने के लिए चाय लेने आते है। शाम को सभी वापस घर आ जाते हैं। वापस दूध निकालना। खाना खाना और सो जाना। 
बुजुर्ग लोग T. V. से बहुत दूर रहते हैं। भजन चल रहा हो तो जरूर सुनेगें। जो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है। ANDROID मोबाइल आज भी उनके लिए चर्चा का विषय है। छोटा बच्चा टच मोबाइल चला लेता है तो उनकी नजरों में वो लड़का बहुत होशियार लड़का है। 
   गाँव में स्पेशल डिश जैसी कोई चीज़ नहीं बनती है। ये त्यौहार से त्यौहार मिलतें है। हाँ कभी कभी बीच में कोई मेहमान आ जाता है तो दाल बाटी बन जाती है। गाँव में ज्यादा नहीं लेकिन बर्तन स्पर्श, खाना खाने अपवित्र होना ये वाला भेदभाव हैं। जो शर्म की बात है। 
   गाँव में एक सरकारी स्कूल और एक अभी नया प्राईवेट स्कूल खुला है। मेरी पढ़ाई सरकारी स्कूल में ही हुई है। बचपन में मैं भी पढ़ने में बहुत होशियार था। दुसरी कक्षा में ही हिन्दी पढ़ना सीख गया था। बाद में नौ वीं में जाकर पढ़ाई पर कम ध्यान देने लगा। 
   गाँव में एक पोर(एक बड़ा घर) है। उसमें रामचंद्र बासा महाराज रहते हैं। वो भजन अच्छा गाते है।तथा ढोलक भी अच्छी बजाते हैं।लेकिन ये छोटे बच्चों के दुश्मन भी है। जब कभी भी किसी बच्चे को खेलता देखते है तो तुरंत डाँट देते है। मेरे भी थे। इनकी मंडली में बाबू बासा भी है। ये मेरे घर के सामने रहते हैं। ये गाते भी है और साथ में तंदूरा अच्छा बजाते है। इनकी भाभी बादामी मोटी बई भी है। जो मुझे पूर्वजों। गाँव में खेती के दाम बताती रहती है। 
   पिछले कुछ वर्षों से गाँव में नवरात्रि स्थापना भी होने लगी है।जब नवरात्रि उठती है तब भोपे सरोवर बावजी आते है और अगला मौसम बताते हैं। या जमाना बताते है।गांव में एक खेड़ी माता का, तथा देवनारायण जी का देवरा है। गाँव की नई आबादी भी है। जिसे मंगरी  कहते है। वहाँ पर बाबा रामदेव जी तथा हनुमान जी का मन्दिर है। एक बहुत बड़ा मैदान भी है। गाँव एक दम स्वच्छ साफ सुथरा है। 
  गाँव में रोज यही दोराया जाता है। हाँ कभी शादी, कर्यावर का न्यौता आ जाता हैं तो छोड़ते नहीं है। और भी बहुत कुछ है अगर मैं लिखुँ तो एक उपन्यास बन जाएं। लेकिन मैंने थोडे़ से शब्दों में अपने गाँव को समेटना चाहा जो शायद मुमकिन नहीं है। 
-गुणवंत कुमार(मेरे अनुभव तक मेरे विचार20/10/19)

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