गाँव में आज जातिवाद का स्वरूप...


नोट-पिछली पोस्ट मैंने आदर्शवादी नजरिये से गाँव का वर्णन किया था। जो है भी। लेकिन आज यथार्थ वर्णन भी करना चाहता हूं। कुछ लोग कहते है "अब कहा जातिवाद? जातिवाद तो खत्म हो गया।" मेरा उद्देश्य कोई इस तरह की बातें कर के जातिवाद को बढ़ाना नहीं है। बस जो मैंने देखा है। मेरा अनुभव आपके समक्ष रख रहा हूँ। और हाँ पोस्ट पढ़ने के बाद ब्राह्मण से नफरत मत करने लगना। क्योंकि मेरा सीधा अर्थ ब्राम्हाणवाद से है। ब्राम्हण से नहीं। जो सभी लोगों की सोच में होता है जाति में नहीं। आप सोचते है कि नहीं भेदभाव सिर्फ एक छोटी जाति के साथ ही होता है। लेकिन नहीं देखना वो छोटी जाति भी अपने से छोटी जाति से भेदभाव करती है। हाँ कह सकते है। सवर्ण इसके कम शिकार होते है। 

 गाँव बहुत प्यारा होता है इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन गाँव में जातिवाद भी होता है। इसमें भी कोई शक नहीं। बाजार में भी होता है। लेकिन वहाँ का मेरा अनुभव नहीं है। लेकिन हां सुना है। होता है। गाँव में आज भी हर समाज के लोगों के श्मशानघाट अलग अलग होते है। सभी जाति के लोगों को एक जगह नहीं जलाया जाता है। मेरे पास का गाँव है बसेड़ा । वहाँ मैंने देखा कि लगभग सभी समाज का अपना अलग श्मशान है। सोचने की बात तो यह है कि जो उनके श्मशान है वो सरकार द्वारा स्वीकृत है। एक श्मशान में दो तीन जातियां,अपने ही स्तर की। वहीं एक साथ जलाते हैं। अब ये स्तर किसने तय किया पता नहीं। वहाँ भी हिन्दुराष्ट्र की कल्पना करने वाले लोग है। लेकिन मैंने कभी उन्हें इस भेदभाव को मिटाने के लिए लड़ते नहीं देखा।
  
 गाँव में आज सभी जाति के लोगों में रोटी-बेटी का व्यवहार कायम नहीं है। बेटी की तो सोचीये भी मत।  जिंदा गाड़ दिये जाओगे अगर ऐसा होता है तो। जहाँ तक रोटी की बात है। वो भी नहीं। और हाँ जहाँ रोटी का व्यवहार है। उन्हें मैं ये बताना चाहता हूं कि रसोई को दो भागों में बाँटा गया है। 
1कच्ची रसोई-
2पक्की रसोई-
समझें? आप से उच्च जाति के लोग तभी आपके यहाँ खाना खाएंगे। जब शादी या अन्य कार्यक्रमों में पक्की रसोई बनेगी। मृत्युभोज वो भी करते है। छोटी जातियों के लोगों को वो बुलाते हैं। और वो इतने नादान है की वह चले भी जाते है और बड़ी शान से खाना खाकर आते है। और पूरे मौहल्लै में ढ़िढोरा पीटेंगे कि आज तो खाना खाने गया था। लेकिन जब दलित जाति के लोगों के यहाँ मृत्युभोज होता है। तो उच्च जाति के लोग नहीं आतें है। अब मृत्युभोज का बहिष्कार करते है वो अलग बात है। लेकिन वो खुद मृत्युभोज की प्रथा को ढ़ोते है। और सोचने की बात यह है कि जिनके यहाँ ये लोग खाना नहीं खाने आते हैं वो भी अपनी से नीची जाति वाली के यहाँ नहीं जातें है। वो भी भेदभाव करते है। 
भेदभाव पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते है कि-"भारत में छोटी से छोटी जाति भी अपने से नीचे की जाति तलाश कर लेती है।"

दो या तीन साल पहले मैं पापा से तर्क वितर्क में पापा से बोला कि हर बार 26 जनवरी या 15 अगस्त वो लोग ही सभी गाँव वालों और स्कूल के बच्चों को खाना खिलाते है। अपनी जाति के लोग कभी कुछ नहीं करते।मैं गुस्सा हुआ। उन्होंने धीरे से कहा तू पागल है। अगर दलित समाज के लोग वहाँ स्कूल में 26 जनवरी या 15 अगस्त पर खाना बनाते है और सभी को खिलाते तो क्या वो लोग खाना खाएंगे? उनके बच्चों को दलित समाज के हाथों का खाना खाने देगें? मुझ से कोई जवाब ना बना। 

 गाँव में दलित समाज के लोग उच्च जाति के लोगों के वहाँ खेतों में काम करने जातें है। तो वहाँ भी भेदभाव से नहीं चूकते। सभी को अपने अलग अलग पानी पीने के लिए बर्तन लेकर जाना पड़ता है। प्लास्टिक की डब्बी(टेंकर) दी जाएगी। वो अपने बर्तन से आपको पानी नहीं पीने देगें। हाथ भी नहीं लगाने देगें। अगर लगा दिया तो फिर उस बर्तन से वो पानी नहीं पीयेंगे। चाहे मर जाएँ। फिर उस बर्तन को रगड़ रगड़ कर रगड़ रगड़ कर साफ करने के बाद पानी पीयेगे। अगर कोई बर्तन भूल गया तो वो उसे ऊपर से धार लगा कर पानी पी लाएंगे। 
 
 गाँवों में आज भी उत्तरवैदिक काल वाली बसावट मिल जाएगी। कैसे? जैसे सवर्ण जाति है वो ज्यादातर गाँव के बीच में रहती है। और जिन लोगों को अछूत या नीचि जाति का माना जाता है उनके घर हमेशा गाँव के बाहर की तरह होते है। उन्हें गाँव के किनारे पर बसाया जाता है। ये मेरे गांव का भी उदाहरण है। पास के गाँवों का भी यही हाल है। और उनके घर ज्यादातर दक्षिण दिशा में होते हैं। उच्च जाति वाले मानते है कि उगते सूरज और ढलते सूरज की जो किरणें आती है सीधा अपने घर में आए। इन दलित जाति के लोगों की काली छाया ना पड़े। जिसे उच्च जाति वाले शुभ नहीं मानते। 

मेरे आस पास के गाँव है। एक महल अम्बावली करके गाँव है। वहाँ पर ऐसा है कि आज भी दलित महिलाओं को अगर सवर्णों के मन्दिर के सामने से सड़क  पर गुजरना होता  है तो जहा मन्दिर है वहाँ पर उनको पैरों में से चप्पल निकालनी पड़ेगी। अगर ऐसा नहीं करते है तो डराया जाता है। बाकी दलित ऐसा नहीं करना चाहते है तो एक और गाँव के बाहर बाहर रास्ता जाता है। उस से घर जाए। ये बातें मुझे वहाँ के स्थानीय लोगों ने ही बताई।और वहाँ की एक महिला का हमारे यहाँ ससुराल है। उसने भी बताया।मौका मिला तो फेसबुक लाइव करके बताऊंगा।आज भी, वहां का छोडिये और बहुत से आस पास के ऐसे गाँव है जहाँ पर दलित समाज के लोगों को बिन्दोली  नहीं निकालने  दी जाता है। दलित समाज का युवक घोड़ी पर नहीं बैठ सकता। ना मालुम उन लोगों का घोड़ी से क्या रिश्ता है।

 अभी गत जूलाई या सितम्बर की ही बात है पास के गाँव नाराणी की बात है।बारीश के समय दलित समाज के लोगों को शमशान में जाने जाने से रोका गया। क्योंकि जो रास्ता था। वो उन लोगों ने बनाया था। उसी गाँव के पास अभी की ही घटना है कि दलित समाज के लोगों का मन्दिर में प्रवेश बंद कर दिया। पास के गाँव सेमरड़ा की बात है वहाँ के दलित समाज के लोगों ने लाश को उच्च जाति वाले लोगों के शमशान में जला दिया। जिससे पूरा गाँव आक्रोश में आ गया। और थाने में रिपोर्ट लिखवा दी कि इन्होंने हमारे शमशान में लाश को जलाया। और तारीफ की बात तो ये कि HDM ने उस रिपोर्ट को स्वीकार किया और कारवाई का आश्वासन दिया। 

 अब बताओ कौन कहता है कि जातिवाद अब नहीं  होता? कभी आस पास देखा है आपने? और जो जातिवाद नहीं हो रहा है कही ना कही उसके पीछे उनको st sc act का डर है। संवैधानिक कारवाई का डर है हाँ कुछ भले लोग होते है। जो इन सब को नहीं मानते है। आप जानबुझकर नहीं देखते हैं।या देखना नहीं चाहते मुझे नहीं पता। सिर्फ गले में से हांडी और पीठ पीछे से झाड़ू हट जाने से जातिवाद खत्म नहीं हो गया। ये अभी भी सोच में जिन्दा है।  अगर दलित के यहाँ खाना खाना हो और आपको दिखाना है कि आप जातिवादी नहीं हो तो आप शायद मन मार के खा लोगें। ये बात सभी दलित समाज के लोगों को बताओगे। लेकिन अपनी समाज के लोगों को बताने से डरोगे। अगर जातिवाद खत्म हो गया तो क्या इन दोनों में आपसी वैवाहिक सम्बन्ध, माता-पिता की आज्ञा से, धुमधाम से होता है? आप कहेंगे नहीं, अब कही कही होता है। मैं कहुंगा नहीं होता है। क्योंकि अगर होता है तो सवर्ण लड़का होगा और दलित लड़की। ना कि सवर्ण लड़की और दलित लड़का होगा। दोनों का विवाह धुमधाम से होगा, परिवार वाले खुश होगे ये बात मैं मान ही नहीं सकता। आपको पता होना चाहिए आज भी छोटे शहरों को तो छोडिये बड़े-बड़े महानगरों में कमरा किराये पर देने से पहले आपकी जाति पूछी जाती है। अगर जाति समझ में नहीं आयी तो फिर कैटेगरी (st, sc, obc, gen,) पूछी जाएगी। अगर उच्ची जाति के निकले तो रुम मिला बाकी दलित हो तो चलते बनों। ये सच्चाई है। आप इसे ठुकरा नहीं सकते। 
-गुणवंत कुमार (मेरे अनुभव तक मेरे विचार 23 अक्टूबर 2019)

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